उत्तराखंड की कला और संस्कृति

हेलो दोस्तों आज में आपको उत्तराखंड की कला और संस्कृति एवं इसका इतिहास ,त्यौहार ,नृत्य ,जनजातीय जीवन ,एवं पर्यटन से जुडी पूरी जानकारी आपको शेयर करने जा रहा हु | उत्तराखंड जिसे भारत की देवभूमि भी कहा जाता है। उत्तराखंड भारत के उत्तरी दिशा में स्थित ज्यादातर पहाड़ी हिस्सा है | उत्तराखंड राज्य का रहन सहन, खान पान, वेश – भूषा, त्यौहार बाकि भारतीय राज्यों के मुकाबले से अलग है जो उत्तराखंड ही नहीं अपितु पुरे भारत की विविधता को दिखाते है |


उत्तराखंड अनेक तीर्थ – स्थलो एवं दार्शनिक स्थान की भूमि के रूप में जाना जाता हैं। इस राज्य का ज्यादातर विस्तार पहाड़ी क्षेत्र में होने की वजह से प्राकृतिक सौंदर्य की झलक भी साफ़ दिखाई पड़ती है। उत्तराखंड की कला और संस्कृति यहाँ के मौसम और जलवायु के अनुरूप ही दिखाई देती है। चूंकि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और इसलिए यहाँ ठण्ड काफी ज्यादा रहती है | चलिए अब हम जानते है उत्तराखंड की कला और संस्कृति के बारे विस्तार से –

1. उत्तराखंड का रहन सहन


उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है यहाँ का ज्यादातर इलाका पहाड़ो से गिरा हुआ है इसलिए यहाँ की ज्यादातर जनसंख्या पहाड़ो में जीवन यापन करती है उत्तराखंड के पहाड़ी इलाको में वर्षभर बारिश और ठण्ड का मौसम रहता है जिस कारण उत्तराखंड की कला और संस्कृति भी पहाड़ो से प्रमुख रूप से जुडी हुई है | उत्तराखंड में पहले लोग पहाड़ियों के ऊपर लकड़ी की छत वाले घरो में रहते थे लेकिन अब उत्तराखंड में पक्की ईंटो और सीमेंट से बने घर आपको देखने को मिल जायेंगे |

अगर यहाँ के ग्रामीण इलाको की बात करे तो उत्तराखंड के लोग आजीविका के लिए कर्षि और पशुपालन पर विशेष रूप से निर्भर है |ग्रामीण लोग दूध का व्यवसाय करते हैं एवं पहाड़ियों में रहने वाले लोग बहुत मेहनती होते है। उत्तराखंड के पहाड़ी लोग भी पढ़े-लिखे होते है, भले ही कम पढ़े लिखे क्यों न हों। इस वजह से उत्तराखंड की साक्षरता दर देश की औसत से कहीं अधिक है।उत्तराखंड के ज्यादातर घरों में रात को रोटी तथा दिन में भात (चावल) खाने की परम्परा है | उत्तराखंड के मैदानी इलाको और पहाड़ी इलाको में रोजगार का बड़ा अंतर देखने को मिलता है जिस कारन यहाँ पहाड़ी इलाको के लोग पलायन करने लगे है उत्तराखंड की आय का प्रमुख स्रोत पर्यटन है क्युकी यहाँ कुदरत ने अपनी प्रकृतिक सुंदरता बिखेरी जिस वजह से हजारो पर्यटक उत्तराखंड आते है |

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2. उत्तराखंड का पहनावा

जैसे देश के प्रत्येक राज्य एवं जनजाति का अपना अलग पहनावा होता है उसी तरह उत्तराखंड की भी अपनी अलग वेशभूसा
जो उत्तराखंड की कला और संस्कृति की अलग पहचान बनाती है | यहाँ की पारम्परिक वेशभूषा में उत्तराखंड की महिलाये द्वारा घाघरा तथा आंगड़ी एवं पूरूष द्वारा चूड़ीदार पजामा व कुर्ता पहनने का चलन था | अब समय के साथ इनकी जगह पेटीकोट, ब्लाउज व साड़ी ने ले ली है। जाड़ों (सर्दियों) में ऊनी कपड़ों को पहना जाता है। उत्तराखंड शादी विवाह समारोह में महिलाएं को गले में हंसुली, चरेऊ, गुलाबन्द , नाक में नथ, पैरों में पायल और बिछुए पहनने की परम्परा है |

कुमाऊँ जनजाति में शुभ अवसरों में पिछोड़ा पहनने की परम्परा है। विवाहित औरत की पहचान गले में चरेऊ से होती है |
इसके आलावा महिलाओ द्वारा अन्य आभूषण जैसे शीषफूल, हाथों में सोने व चाँदी के पौजी तथा पैरो में पाजेब आदि भी पहनने जाते है |

3. उत्तराखंड की भाषा (उत्तराखंड की कला और संस्कृति)

उत्तराखंड की कला और संस्कृति – उत्तराखण्ड की राजकीय भाषा हिन्दी है। यहाँ ज्यादातर सरकारी कामकाज एवं स्कूलों और नगरों में हिन्दी भाषा काम में ली जाती है।इसके आलावा कुमाऊँ के ग्रामीण इलाकों में कुमाऊँनी तथा गढ़वाल के ग्रामीण क्षेत्रों में गढ़वाली भाषा प्रमुख रूप से बोली जाती है। कुमाउँनी तथा गढबाली भाषा में संस्कृत के अनेक शव्दों का प्रयोग होने की वजह से इन भाषाओँ को संस्कृत का विकसित रूप माना जाता है। कुमाऊँनी तथा गढ़वाली भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। गढ़वाल के जौनसार भाभर क्षेत्र में जौनसारी भाषा बोली जाती है। इसके अलावा संस्कृत को उत्तराखंड की दूसरी भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है |

4. उत्तराखंड के त्यौहार

उत्तराखंड की कला और संस्कृति – उत्तराखंड के त्योहार बहुत रंगीन और अनोखे होते हैं | यह त्यौहार विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों का अच्छी तरह मिश्रण करके उत्तराखंड की कला और संस्कृति को दिखाने का काम करते हैं। उत्तराखंड के लोगों के रंग और खुशी के उत्सव के लिए प्यार अच्छी तरह से परिलक्षित होता है जिसके साथ वे खुद को त्योहारों के लिए पूरी तरह से आत्मसमर्पित करते हैं। उत्तराखंड के लोग बहुत उत्साह और उत्साह के साथ राष्ट्र के सभी प्रमुख त्योहार मनाते हैं। उत्तराखंड के त्योहारों ने राज्य को समृद्ध बनाए रखने में योगदान दिया है | उत्तराखंड के प्रमुख त्यौहार इस प्रकार है :-

फूलदेई (फूल संक्रांति): फूलदेई या फूल सक्रांति चैत मास के पहले दिन जाती है इस दिन युवा लड़किया लोगो के घर-घर जाकर घरो की देहली पर फूल चढ़ाते है। लकड़ी की टोकरी में फूल, गुड, चावल और नारियल डालकर गांव के लोगों के घरों के मुख्यद्वार पर रखकर घर की सुख समृद्धि की प्राथना करते है |

हरेला:
यह त्यौहार श्रावण महीने के प्रथम दिन मनाया जाता है। इसमें 10 दिन पहले एक बर्तन में 5 या 7 प्रकार के बीज बोये जाते है तथा हरेले के दिन इसे काटकर देवताओ को चढ़ाया जाता है।

संत पंचमी

संत पंचमी उत्तराखंड के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है इसमें बसंत ऋतु के आगमन का जश्न मनाया है। त्योहारी सीजन में सर्दियां के ख़तम होने पर इसको मृत्यु और क्षय का प्रतीक माना जाता है। यह आमतौर पर जनवरी / फरवरी के महीनों में आता है। इस शुभ दिन के दौरान लोग द्वारा बहुत अधिक आस्था के साथ देवी सरस्वती की पूजा की जाती है |

कुमाऊँ की होली

कुमाऊँ की होली उत्तराखंड के सबसे अलग त्योहारों में स्थान रखता है और इसकी विशेस्ता इसके संगीतमय होने में निहित है। इस उत्सव का जश्न मंदिरों से लेकर हर जगह मनाया जाता है, जहां गायक शास्त्रीय संगीत पर पारंपरिक गीत गाने के लिए आते हैं। इस त्योहार को दो नामों से जाना जाता है, बैथकी होली और खारी होली।

ओलगिया / घी संक्रांति

यह त्योहार भादो महीने के पहले दिन मनाया जाता है। यह वो समय होता है जब फसल रसीला और हरी है और सब्जियां बहुत ज्यादा में होती हैं। यह कृषिप्रेमियों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है और इस दिन घी संक्रांति त्योहार को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता हैं।

इसके अलावा पहाड़ी यात्रा, गंगा दसहरा ,वट सावित्री ,भिताली,बसंत पंचमी आदि कुछ प्रमुख लोकल त्यौहार भी बड़े उत्साह से मनाये जाते है | इसके अलावा भारत के अन्य प्रमुख त्यौहार भी बनाये जाते है |

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5. उत्तराखंड की लोककला

लोक कला की दृष्टि से उत्तराखंड की कला और संस्कृति बहुत ही समृद्ध है। उत्तराखंड में घरो की सजावट में लोक कला सबसे पहला स्थान रखती है | दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ कार्यो पर महिलाएँ घर में ऐंपण (अल्पना) बनाती है। इसके लिए सबसे पहले घर, ऑंगन को गेरू से लीपा जाता है। चावल को भिगोकर उसे पीसा जाता है। उसके लेप से घरो ,आँगन ,दीवारों पर आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं।

अलग अलग शुभ अवसरों पर नामकरण चौकी, सूर्य चौकी, स्नान चौकी, जन्मदिन चौकी, यज्ञोपवीत चौकी, विवाह चौकी, धूमिलअर्ध्य चौकी, वर चौकी, आचार्य चौकी, अष्टदल कमल, स्वास्तिक पीठ, विष्णु पीठ, शिव पीठ, शिव शक्ति पीठ, सरस्वती पीठ आदि गाँव की महिलाएँ द्वारा स्वयं बनाया जाता है। यह महिलाये बिना सीखे अपनी मेहनत से बनाती है | हरेले जैसे पर्वों पर मिट्टी के डिकारे या मूर्तियाँ बनाकर इनकी पूजा की जाती है |

प्राचीन समय से यहाँ के घरों ,दरवाजों व खिड़कियों को लकड़ी की सजावट से बनाने की परम्परा रही है | दरवाजों के चौखट पर देवी-देवताओं, हाथी, शेर, मोर आदि के चित्र बड़े सूंदर तरीके से बनाए जाते है। प्राचीन समय के घरों की छत पर चिड़ियों के घोंसलें बनाने के लिए भी स्थान अलग से देखा जा सकता है | हालाँकि ऐसा नहीं है की अब यह कला पूरी तरह से ख़तम हो चुकी है ग्रामीण जगहों पर नक्काशी व चित्रकारी पारम्परिक रूप से आज भी की जाती है। लकिन वैश्वीकरण के दौर में पुरानी कला धीरे धीरे विलुप्त हो रही है | कई जगहों पर आज भी काष्ठ कला देखने को मिल जाएगी | उत्तराखण्ड के प्राचीन मन्दिरों में पत्थरों को तराश कर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र , प्राचीन गुफाओं तथा उड्यारों में भी शैल चित्र देखने को मिल जायँगे |


6. उत्तराखंड का खानपान

साउथ इंडिया की कला और संस्कृति
साउथ इंडिया की कला और संस्कृति

उत्तराखंड की कला और संस्कृति के साथ अपने व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है | उत्तराखंड के पारम्परिक भोजन में मौजूद पहाड़ी संस्कृति ,रहन सहन और खान पान की झलक दिखाई देती है उत्तराखंड के पारम्परिक व्यंजन यहाँ के जीवन का प्रमुख हिस्सा है |
उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजनों के बारे में सबसे अलग यह है कि यह अधिकतर जलती हुई लकड़ी या लकड़ी के कोयला पर पकाया जाता है, जो उन्हें अतिरिक्त पौष्टिक गुणों के साथ होने हिस्सा बनाता है।

ऐसे अगर बात करे तो उत्तराखंड के व्यंजन कई प्रकार के है वैसे तो कुमाऊ और गढ़वाल समुदाय दोनों की संस्कृति में विविधता दिखाई देती है लकिन व्यजनो के मामले में उत्तराखंड में कुछ व्यंजन को छोड़कर बाकि सब एक ही है | उत्तराखंड में मौसम के अनुसार व्यजन भी अलग अलग बनाये जाते है यहाँ पर सर्दियों में तिल के लड्डू या फिर मडवी की रोटियां बनायीं जाती है उसी तरह गर्मी में यहाँ पर छाछ – झंगोरा ,छोलिया रोटियों के साथ पसंद की जाती है |उत्तराखंड में होने वाली दालो का प्रयोग भी मौसम के अनुसार खाने में किया जाता है |


उत्तराखंड के प्रमुख भोजन इस प्रकार है

कौफुली , भांग की चटनी , फानू ,चैनसू , गढ़वाल का फन्नाह – बाड़ी – आलू टमाटर का झोल आदि कुछ गढ़वाली भोजन है | कंडाली का साग – कुमाऊँनी रायता – डबूक –चुड़कनी ,कापा ,जोला , आलू गुटूक – थटवानी/रास आदि कुमाऊ के कुछ प्रमुख भोजन है |
वही उत्तराखंड की मिठाइयों में सिंघाल पोहा,झंगोरे की खीर ,सीगुड़ी, बाल मिठाई , आटे की खीर ,चावल से बने चमचोड़ ,गुलगुला आदि प्रमुख पारम्परिक मिठाई बनायीं जाती है हालांकि प्रत्येक व्यंजन की पूरी जानकारी दूसरे आर्टिकल में दूंगा |

7. उत्तराखंड के पर्यटन

उत्तराखंड की कला और संस्कृति में अब हम उत्तराखंड के पर्यटन पर आ पहुंचे है जो उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में और उसकी पहचान में प्रमुख योगदान रखता है | उत्तराखंड में हर वर्ष लाखो की संख्या में पर्यटक देश विदेश से यहाँ की खुबसुरती और इतिहास को देखने आते है |

उत्तराखंड एक ऐसा स्थान है जो न केवल हिमालय की खूबसूरती दिखाता है बल्कि एक सांस्कृतिक सभ्यता और लोकाचार की भावना को भी पेश करता हैं। राज्य में आप ओक, बिर्च, चांदी के फेयर और रोडोडेंड्रोन के साथ-साथ यहां की खड़ी पहाड़ी, ढलानों पर चढ़ने का खूबसूरत मज़ा भी पर्यटक ले सकते हैं।उत्तराखंड में बड़ी संख्या में पर्यटक विशेषकर गर्मी के मौसम में आते है |

उत्तराखण्ड में भारत के कुछ सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल मौजूद हैं जैसे नैनीताल, मसूरी, देहरादून, कौसानी इत्यादि। इसके अलावा यहाँ पर राष्ट्रीय उद्यान भी हैं जैसे फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान, जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, राजाजी राष्ट्रीय अभयारण्य, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान आदि प्रमुख है ।

उत्तराखण्ड में वैदिक संस्कृति के कुछ अति महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान होने की वजह से इसे भारत की देव भूमि के रूप में भी जाना जाता हैं। क्युकी यहाँ के हर कोने में किसी ना किसी देवता या देवी का मन्दिर है। इसमें भारत का प्रमुख धार्मिक नगरों में से एक हरिद्वार स्थित है। इसके पास स्थित ऋषिकेश भारत में योग क एक प्रमुख केंन्द्र भी है इसके अतिरिकत इसी राज्य में हिन्दू धर्म के तीर्थ स्थल केदारनाथ, गंगोत्री, बद्रीनाथ, यमुनोत्री तथा दूनागिरी भी इस राज्य की गोद में बसे हुए है | भारत की दो पवित्र नदियां गंगा और यमुना का उद्गम स्थल भी मौजूद है।


इसके अलावा उत्तराखंड में भारत के प्रमुख हिल स्टेशन भी उत्तराखंड की खूबसूरती में चार चाँद लगा देते है जैसे – अल्मोड़ा, कौसानी, भीमताल, मसूरी, नैनीताल, धनोल्टी, लैंसडाउन, सटल और रानीखेत जो पर्यटकों की दिलचस्पी और बड़ा देते हैं।

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8. उत्तराखंड का इतिहास

उत्तराखंड का अर्थ है :- उत्तरी भू-भाग का रूपांतर | इस नाम का उल्लेख प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में मिलता हैं, जहाँ पर कुमाऊँ को मानसखंड तथा गढ़वाल को केदारखंड के नाम से जाना जाता हैं |पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर को माना जाता हैं। कुबेर राजा की राजधानी अलकापुरी जोकि बद्रीनाथ से ऊपर है को कहा गया है | अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हूण, शक, नाग, खस आदि जातियाँ भी इस क्षेत्र में निवास करती थी। हिन्दू ग्रंथो में इस क्षेत्र को देवभूमि व तपोभूमि माना गया है।

भारतीय गणतन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त 1949 में किया गया और टिहरी राज्य को आजादी के बाद उत्तर प्रदेश का एक जिला घोषित कर दिया गया। 1962 के भारत-चीन युद्ध से पूर्व सीमान्त क्षेत्रों के विकास की जरुरत महसूस हुई | उसके बाद 1960 में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया था। एक नये राज्य के रूप में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के फलसवरूप उत्तराखण्ड की स्थापना 1 नवम्बर 2000 को की गयी । इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

9. उत्तराखंड कैसे जाए


हवाई मार्ग से उत्तराखंड कैसे पहुंचे –

उत्तराखंड की कला और संस्कृति – उत्तराखंड में तीन हवाई अड्डे स्थित है, जिनका नाम जॉली ग्रांट (देहरादून), पंतनगर और पिथौरागढ़ है। यदि आप देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, मसूरी, रुड़की, कोटद्वार, लैंसडाउन, देवप्रयाग, कर्णप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गोपेश्वर और जोशीमठ जाते हैं, तो आपको जॉली ग्रांट (देहरादून) हवाई अड्डे से जाना होगा |इसके अतिरिक्त आप केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, तुंगनाथ, मद्महेश्वर, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर मंदिर आदि भी जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से जाना होगा |


पंतनगर हवाईअड्डे से आप रुद्रपुर, नैनीताल, हलद्वानी, रामनगर, मुक्तेश्वर, अल्मोड़ा, कौसानी और रानीखेत आदि की यात्रा कर सकते है |
पिथौरागढ़ हवाईअड्डे से आप पिथौरागढ़, मुनस्यारी, कौसानी, बागेश्वर और जागेश्वर धाम आदि की यात्रा नजदीक रहेगी |

सड़कमार्ग से उत्तराखंड कैसे जाये


उत्तराखंड के प्रमुख शहर जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, नैनीताल, मसूरी, रुद्रपुर, हलद्वानी, तल्लिताल, रामनगर और पौड़ी जाने के लिए दिल्ली जैसे बड़े देश मुख्य शहरों से उत्तराखंड अच्छी तरह जुड़ा हुआ है | आप यहाँ से बस पकड़कर उत्तराखंड पहुँच सकते है |

ट्रेन से उत्तराखंड कैसे जाये


दिल्ली, हरियाणा, मुंबई, लखनऊ, जयपुर और चंडीगढ़ के साथ-साथ देश के अन्य प्रमुख राज्यों एवं शहरों से उत्तराखंड के प्रमुख शहरों जैसे देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार, हलद्वानी, रामनगर, टनकपुर, काठगोदाम, रुड़की, पंतनगर, रुद्रपुर से रेल सेवा उपलब्ध है |

आज हमने इस आर्टिकल उत्तराखण्ड की कला और संस्कृति की पूरी जानकारी को विस्तार से जाना है उम्मीद है आपको मेरी यह पोस्ट पसंद आयी होगी अगर मेरे से कोई गलती हुए हो या पोस्ट आपको पसंद न आये तो निचे कमेंट सेक्शन में जरूर लिखे |

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