साउथ इंडिया की कला और संस्कृति

आज का मेरा आर्टिकल दक्षिण भारत बारे में है जो भारत का सबसे डेवलप रीजन है शायद आप कभी गए होंगे |साउथ इंडिया की पहचान ही वहा की संस्कृति और खानपान में छुपी है | साउथ इंडिया की कला और संस्कृति के बिना भारत की संस्कृति अधूरी है क्युकी भारतीय संस्कृति सभी राज्यों का मिश्रित रूप है |

दक्षिण भारत की बात करे तो इसमें कर्नाटक ,तमिलनाडु ,केरल , तेलंगाना , आँध्रप्रदेश , राज्य आते है हालाँकि सभी राज्यों के अपने उत्सव ,त्यौहार, नृत्य , भाषा ,अलग अलग है लेकिन यह बहुत हद्द तक अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों से मिलते जुलते है साउथ इंडिया के अन्य राज्यों की बात करे लगभग पुरे साउथ इंडिया की कला और संस्कृति देश के अन्य राज्यों से काफी अलग है |

Table of Contents

अभी हम साउथ इंडिया की कला और संस्कृति के बारे में विस्तार से जानते है फिर भी पूरा नहीं जान सकते क्युकी
कला और संस्कृति एक बहुत विस्तृत सब्जेक्ट जिसको एक आर्टिकल में बता पाना संभव नहीं होता है हम बाद में स्टेट के आर्टिकल में इसको और कवर करेंगे |

1. साउथ इंडिया की पारम्परिक वेशभूसा

साउथ इंडिया की कला और संस्कृति
साउथ इंडिया की कला और संस्कृति

दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाको में पहने जाने वाले पारंपरिक परिधान उनके अद्भुत डिजाइन और रंगीनता के लिए विश्व में प्रसिद्ध हैं। गाँवों में सामान्य पुरुष परिधान धोती, कुर्ता, लुंगी आदि प्रमुख हैं। दक्षिण भारत में महिलाओं का पहनावा एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग अलग हैं।

साड़ी साउथ इंडिया की कला और संस्कृति में सभी संस्कृतियों और समुदायों की महिलाओं के लिए मुख्य पहनावा है। जैसा की अन्य भारतीय राज्यों में हैं | साड़ी के अलावा महिलाय अन्य प्रमुख पारंपरिक परिधानों में सलवार कमीज भी पहनती हैं। मुस्लिम महिलाओ के द्वारा बुरका और हिजाब प्रमुख पहनावा है जबकि केरल के गांवों में मुंडम नेरियाथुम महिलाओं का पारंपरिक पहनावा का पालन किया जाता है |

पुरुष परिधान में ट्रेडिशनल सारंग प्रमुख रूप से पहना जाता है जो एक प्रकार की सफ़ेद धोती या बाटिक पैटर्न वाली लुंगी होती है | जबकि साड़ी एक बिना सिला हुआ कपड़ा होता है जो पहनने वाले के आकार को बढ़ाती है जो केवल मध्य भाग मुश्किल से ढकती है। साड़ी के यह नियम अन्य प्रकार के के वस्त्र , जैसे लुंगी या मुंडू या पंची जिसे कन्नड़ में रंगीन रेशम की सीमाओं वाली एक सफेद लुंगी के रूप में पहना जाता है।

ट्रेडिशनल साउथ इंडियन पुरुष अपने शरीर ऊपर के भाग को नहीं ढकते है | आँध्रप्रदेश और उत्तरी कर्नाटक के कुछ हिस्सों में पुरुष कच्चे पंछी पहनते हैं जहां इसे पैरों के बीच ले जाकर पीछे बांधा जाता है। महिलाओं में भी ऐसा ही पैटर्न देखा जाता है।साउथ इंडिया के तटीय क्षेत्र में पुरुष रंगीन लुंगी और महिलाएँ पीछे की ओर बाँधने के तरीके से साड़ी पहनती हैं |

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2. साउथ इंडिया का खानपान

साउथ इंडिया का खानपान साउथ इंडिया की पहचान है जो साउथ इंडिया की कला और संस्कृति में प्रमुख योगदान रखता है |

साउथ इंडिया का खान पान बाकि भारतीय राज्यों और नार्थ इंडिया से काफी अलग है क्षेत्रीय स्तर पर भी खानपान में बहुत विविधता देखने को मिलती हैं एवं खानपान की बड़ी विस्तृत श्रृंख्ला देखने को मिलती जो काफी हद तक परंपराओं पर आधारित हैं।पूर्वी भारत के जैसे यहाँ के खानपान में चावल मुख्य आहार है। दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक के तटीय जगहों में नारियल खानपान के रूप में महत्वपूर्ण सामग्री है | हैदराबादी बिरयानी भी तेलंगाना और अन्य पड़ोसी राज्यों में बहुत लोकप्रिय है |

जबकि आंध्र प्रदेश की बात करे तो यहाँ के व्यंजनों में अचार , मसालेदार सुगंधित करी और मिर्च पाउडर का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता है। . डोसा , इडली , उत्तपम आदि पूरे साउथ इंडिया में लोकप्रिय हैं। केरल राज्य और मैंगलोर शहर जैसे तटीय क्षेत्र अपने समुद्री भोजन के लिए जाने जाते हैं। दक्षिण भारतीय कॉफी आम तौर पर काफी मजबूत होती है, और पूरे मालाबार क्षेत्र में कॉफी एक पसंदीदा पेय है ।

तमिलनाडु अपनी इडली, डोसा , पोंगल, सांभर, वड़ा, पुरी के लिए प्रसिद्ध है , जो तमिल परिवारों में आम नाश्ता है। मलयाली लोगों में अप्पम, पुट्टू, उपमव, मालाबार बिरयानी कुछ आम व्यंजन हैं। कर्नाटक में बिसिबेले बाथ, कारा बाथ, केसरी बाथ, रग्गी मुड्डा, उदिन वड़ा, बेने मसाला डोसा, पेपर डोसा कुछ आम व्यंजन हैं।

खान-पान की आदतें क्षेत्रीय स्तर पर भी विविध और यह साउथ इंडिया की कला और संस्कृति में प्रमुख स्थान रखती है जो काफी हद तक परंपराओं पर आधारित हैं।

चावल दक्षिण भारत में खाने का प्रमुख आहार है | केरल और कर्नाटक के तटीय हिस्से में नारियल एक महत्वपूर्ण सामग्री है , हैदराबादी बिरयानी भी तेलंगाना और अन्य पड़ोसी राज्यों में बहुत खास है, जबकि आंध्र प्रदेश में व्यंजनों की विशेषता अचार , मसालेदार सुगंधित करी और मिर्च पाउडर का प्रचुर उपयोग है। डोसा , इडली , उत्तपम आदि पूरे क्षेत्र में लोकप्रिय हैं।

दक्षिण भारत के केरल राज्य और मैंगलोर शहर के तटीय क्षेत्र में समुद्री भोजन बहुत लोकप्रिय है | तमिलनाडु अपनी इडली, डोसा , पोंगल, सांभर, वड़ा, पुरी के लिए जाना जाता है यह तमिल लोगो में आम नाश्ता है। मलयाली लोगों में अप्पम, पुट्टू, उपमव, मालाबार बिरयानी आम डिशेस है | जबकि कर्नाटक में बिसिबेले बाथ, कारा बाथ, केसरी बाथ, रग्गी मुड्डा, उदिन वड़ा, बेने मसाला डोसा, पेपर डोसा कुछ प्रमुख खाध प्रदार्थ है |

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इसके अलावा भी साउथ इंडिया के बहुत सारे व्यंजन है जो अलग अलग राज्यों में बनाये जाते है |

3. साउथ इंडिया की संस्कृति

साउथ इंडिया की कला और संस्कृति दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया से मिलती जुलती है क्योंकि दक्षिण भारत के कई वंशों ने दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया पर लम्बे समय तक शासन किया था ।

साउथ इंडिया की कला और संस्कृति एक समृद्ध और विस्तृत संस्कृतिक विरासत है जो भारत की विविधता में कई गुना इजाफा करती है | अगर आप वास्तव में इसका अनुभव करना एवं जानना चाहते तो आपको त्योहारों में भाग लेने, इसके व्यंजनों का स्वाद लेने, इसकी वास्तुकला विरासत को जानने, यहाँ के समुद्र तटों के आकर्षण को महसूस करके और यहाँ की प्रमुख जगहों की खोज करके ही संभव है ।

दक्षिण भारतीय राज्य की अपनी रंगीन संस्कृति है जिसमें कई अनुष्ठान और मान्यताएँ एवं नियम की अपनी जगह हैं। साउथ इंडिया की अनोखी और जीवंत संस्कृति को देखने के लिए दुनिया भर से लाखो पर्यटक आते है । पोंगल, ओणम, नृत्य और संगीत उत्सव, हम्पी उत्सव और फायर वॉक उत्सव जैसे अनेको त्यौहार है |

साउथ इंडिया की कला और संस्कृति जो उनके नृत्य, कपड़े और मूर्तियों , शिल्पकला ,व्यंजन , उनकी भाषा एवं फिल्मो के माध्यम से दिखाई देती है क्युकी साउथ इंडिया के लोग अपनी सस्कृति से अच्छी तरह से जुड़े हुए है उनको अपनी सस्कृति ,अपनी पहचान एवं विरासत पर गर्व है | इसका उनके जीवन में बहुत महत्त्व है । दक्षिण भारतीय व्यक्ति सफेद पंचा या रंगीन लुंगी को पहनता है और औरते परंपरागत शैली में एक साड़ी पहनती है । दक्षिण भारत में चावल सबसे अधिक खाया जाता है, जबकि मछली दक्षिण भारतीय भोजनों का अभिन्न अंग है।

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4. साउथ इंडिया के फेस्टिवल

साउथ इंडिया रंगीन त्योहारों से भरा हुआ है जहा पर विभिन्न तयोहार बड़े धूम धाम से मनाये जाते है यह त्यौहार साउथ इंडिया की कला और संस्कृति की विविधता को दर्शाते है | साउथ इंडिया द्रविड़ परंपरा पर आधारित होने की वजह से अपने स्वयं के त्योहारों को मनाने के लिए अलग-अलग तरीको का पालन करती हैं |

मैसूर दोसरा

कर्नाटक की बात करे तो सबसे विशेष दुशरा है, जिसे मैसूर दोसरा नाम से भी जाना जाता है। यह देवी चामुंडेश्वरी को समर्पित हैं। यह 10 दिन का एक लंबा चलने वाला त्योहार है जो अक्टूबर में मनाया जाता हैं ।मसूर दोसरा की शुरुआत नौ रातों से होती है जिन्हें नवरात्रि कहते है जबकि अंतिम दिन विजयादशमी को देवी चामुंडी की मूर्ति को ले जाने वाले कैपरीसदार रंगीन हाथियों को शहर में ले जाने के साथ समाप्त होता है।

इस त्योहार को मैसूर के महाराजा द्वारा शुरू किया गया और आज तक इसका पालन किया जाता है। महल हर रात 100,000 से अधिक बल्ब से प्रकाशित होता है इस महोत्सव को महाराजा महल के महान दरबार में कई सांस्कृतिक प्रदर्शनों के साथ पारम्परिक शैली में मनाया जाता है।

ओणम

केरल का प्रमुख त्यौहार ओणम को सितम्बर के महीने में धर्मात्मा राजा – राजा महाबली के सम्मान में मनाया जाता है | ऐसा माना जाता है की राजा महाबली के समय को केरल के सर्वणिम युग में जाना जाता है | ओणम दक्षिण भारत में पौराणिक धर्मात्मा राजा महाबली की वापसी का जश्न मनाने के उद्देस्य से पूरे केरल में समुदायों को एक साथ लाने वाला प्रमुख त्यौहार है ।

इस त्यौहार को केरल के सभी जाति धर्म के लोग धूमधाम से मनाते है | यह केरल की कला और संस्कृति की खूबसूरती को बया करता है |इस दिन घरों को पुष्प कालीनों , पारंपरिक रूपों से सजाया जाता है | । प्रत्येक घर में विस्तृत शानदार पकवान बनाये जाते है |

पोंगल

भारत के सबसे पूर्वी तट पर स्थित तमिलनाडु का सबसे लोकप्रिय त्यौहार को पोंगल नाम से जाना जाता है | यह हर साल जनवरी में मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है |


पोंगल त्यौहार 4 दिवसीय त्यौहार है जो सम्पूर्ण तमिलनाडु में बड़े उत्साह से प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है | इस उत्सव के मोके पर लोग नए कपड़े पहनते हैं एवं चावल के आटे के साथ अपने घरों के सामने खूबसूरत तस्वीरें या बनाते हैं। इस मोके पर मवेशियों को सजाया जाता है ।

पहली चावल से बनी प्याली को पकायी जाती है, जिसे पोंगल के रूप में जाना जाता है | तमिलनाडु का यह चार दिवसीय त्योहार प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हुए मनाया जाता है। पोंगल का शाब्दिक अर्थ होता है “फैलना” | इसे यह नाम बर्तन में चावल उबालने की वजह से दिया गया है | इस फेस्टिवल में कोलम बनाना, झूला झूलना और स्वादिष्ट पोंगल पकाना शामिल होता है।

हम्पी उत्सव

हम्पी उत्सव को विजया उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। हम्पी फेस्टिवल विजयनगर साम्राज्य के युग से मनाया जाता है। इस को हाल ही में कर्नाटक सरकार द्वारा “नाडा उत्सव” का नाम रखा गया है। हम्पी को एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में जाना जाता है और हम्पी फेस्टिवल का आयोजन एक विशाल सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है। इस फेस्टिवल में पूरे भारत से प्रसिद्ध कलाकार अपना जादू बिखेरने आते हैं ।

उगादी

उगादी का मतलब एक नए युग की शुरुआत होना है। यह त्यौहार तेलुगु नव वर्ष एवं हिंदू चंद्र कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्यौहार प्रकृति के साथ सद्भाव, उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता है |


उगादी कच्चे आम की सुगंध का जश्न मनाता है, यह तेलुगु समुदाय का एक अनूठा उत्सव व्यंजन है। इस त्योहार के व्यंजनों में अतुकुलु पायसम, बेल्लम गरेलु, सेमिया पायसम, पप्पू पुलुसु और वंकाया बटानी आदि शामिल हैं। उगादि पचड़ी मीठे से लेकर कड़वे तक अलग -अलग स्वादों का एक मिश्रण है |

यह कुछ फेस्टिवल है इसके अलावा साउथ इंडिया की कला और संस्कृति त्योहारों से भरी हुई है | जिसमे महमहम महोत्सव, ओबडी, करागा, ॐ:, विशु: , दुर्गा पूजा:, ईदू त्यौहार:, गणेश चतुर्थी , तिरुसासुर पुरम , जैसे बहुत फेस्टिवल है |

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5. साउथ इंडिया का नृत्य

पदायणी (केरल)

पदायणी दक्षिणी केरल के सबसे रंगीन और खूबसूरत नृत्यों में से एक है। यह नृत्य दृश्यों को चित्रित करता है। ऐसे मंदिर एलेप्पी, क्विलोन, पट्टनमथिट्टा और कोट्टायम जिलों में हैं। पदायनी में चित्रित मुख्य भव्य मुखौटे , भैरवी , कालान जो मृत्यु का देवता, परी और पक्षी है।

पदायिनी में एक दिव्य और अर्ध-दिव्य माइकल की श्रृंखला है जिसमे आकारों और रंगों के कोलम को शामिल किया गया है।

कुम्मी (तमिलनाडु)

कुम्मी तमिल का प्रमुख लोकप्रिय लोक नृत्य है, त्योहारों के समय कुम्मी महिलाओं के द्वारा किया जाता है। कुम्मी नृत्य एक सरल लोक नृत्य है जिसमे नृत्य मंडलियाँ मिलकर करती हैं एवं लयबद्ध तरीकों से ताली बजाती हैं।

कोलाट्टम

कोलाट्टम या छड़ी नृत्य आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु में सबसे लोकप्रिय एवं गुजराती डांडिया से मिलता जुलता है। कोलाट्टम कोल जो एक छोटी सी छड़ी है | इसमें लय प्रदान करने के लिए दो छड़ियों का उपयोग होता हैं। नर्तक एक साथ घेरे में नृत्य करते हैं एवं एक दूसरे से छड़ियो को भिड़ाते हैं।

यह मुख्य रूप से आठ से चालीस महिलाओं द्वारा जोड़े में किया जाता है।इसे कोलानालु या कोलकाल्लनु के नाम से भी जानते है |

परिणी नृत्य

पेरिनी थांडवम योद्धाओं का एक पुरुष नृत्य है। यह आंध्र प्रदेश राज्य के कुछ जगहों में लोकप्रिय है। पहले के समय में काकतिया वंश के शासकों ने इसको नृत्य का संरक्षण किया था। पेरिनी नृत्य को ड्रम की हरा के साथ-साथ किया जाता है। वर्तमान में पद्मश्री डॉ. नटराज रामकृष्ण द्वारा इसे पुनर्जीवित किया गया है।

थेय्यम

यह साउथ इंडिया की कला और संस्कृति में प्राचीन कहानियों को जीवंत करने का प्रयास करता है। यह अच्छी फसल और समृद्धि की उम्मीद से देवताओं को याद करने का एक तरीका है।

थेय्यम प्रदर्शन को वेल्लाटम के नाम से जाना जाता है, जिसमे थेय्यम के 400 से अधिक सेटों में से कोई भी प्रस्तुत करा जा सकता है, जिनमें से प्र्त्येके की अपनी अनूठी शैली एवं संगीत है।

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6. साउथ इंडिया का संगीत

संगीत साउथ इंडिया की कला और संस्कृति विविधता को दर्शाता है. इसमें ग्रामीण लोक संगीत से लेकर साउथ इंडिया के भारतीय शास्त्रीय संगीत को कर्नाटक संगीत के रूप में जाना जाता है |

क्युकी सारंग देव ने इसको कर्नाटका संगीत नाम दिया है | यह संगीत तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के मंदिरो में विकसित हुआ है। इसी वजह से दक्षिण भारतीय संगीत में भक्ति रस अधिक देखा जाता है पुरंदर दास , कनक दासरू , त्यागराज , दीक्षाधर, श्यामा शास्त्री और स्वाति तिरुनल जैसे संगीतकारों द्वारा मधुर, अधिकतर भक्तिपूर्ण, लयबद्ध और संरचित संगीत मुख्य भूमिका निभाता है।

त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की ‘त्रिमूर्ति’ माना जाता है | कर्नाटक संगीत में गीत काफी हद तक भक्तिपूर्ण रूप में गाये जाते हैं; ज्यादातर गीत देवी-देवताओं पर आधारित है |


कर्नाटक शैली में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति प्रमुख रूप में संगीत में हैं।

कर्नाटका गायन शैली के रूप


वर्णम: इसके तीन प्रमुख भाग पल्लवी, अनुपल्लवी तथा मुक्तयीश्वर होते हैं। इसकी तुलना हिंदुस्तानी शैली के ठुमरी से कर सकते है।

जावाली: यह शैली प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के समय इसे प्रमुखता से गाया जाता है। इसकी गति बहुत अधिक होती है।

तिल्लाना: उत्तरी भारत में तराना के जैसे ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली प्रमुख होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की मुख्य गायन शैली है।

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7. साउथ इंडिया की शिल्पकला

साउथ इंडिया की कला और संस्कृति
साउथ इंडिया की कला और संस्कृति

दक्षिण भारत या साउथ इंडिया की कला और संस्कृति समृद्ध परंपरा और संस्कृति से पूरी तरह संपन्न जगह है जो दक्षिण भारत की कला को हस्तशिल्प के जरिये प्रकट करता है । दक्षिण भारत की शिल्पकला पुरे भारत से अनोखी एवं सूंदर है। दक्षिण भारत हस्तशिल्प जो साउथ इंडिया के लोगों का एक अभिन्नं हिस्सा रहा है और भी आगे रहेगा | दक्षिण भारत की पारंपरिक कला एवं शिल्प परंपराओं से विशेष रूप से प्रभावित दिखाई देता है। क्युकी इसमें सदियों से प्रचलित कलात्मक और शिल्प की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है।


राज्य्वार देखे तो इसमें –

कर्नाटक में पारंपरिक शिल्प कार्यों में कढ़ाई और सजाए गए वस्त्र, हाथी दांत की साँप की नावें, आभूषण, चटाई पेंटिंग और मैसूर पेंटिंग, लकड़ी का काम, कथकली गुड़िया एवं मुखौटे, चंदन की वस्तुएं, लैंप जैसी पेंटिंग फेमस है। जबकि मैसूर रेशम एवं रेशम उत्पादों द्वारा पूरी विश्व में लोकप्रिय है।

तमिलनाडु का हस्तशिल्प पहले के समय सुंदर और समृद्ध मंदिरों से अत्यधिक प्रभावशाली था। तंजौर पेंटिंग तमिलनाडु की सबसे लोकप्रिय शिल्प कलाकृति है। वाद्य यंत्र बनाना भी तमिलनाडु का प्रमुख शिल्प है। यहाँ के प्रसिद्ध कारीगरों वाद्ययंत्र में लकड़ी के यज़, वीणा, थम्बुरास, बांसुरी हैं। हस्तशिल्प में धातु के बर्तन, आभूषण, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी के शिल्प, पत्थर की नक्काशी आदि तमिलनाडु के कुछ अद्भुत हस्तशिल्प हैं। इसके आलावा रेशम की साड़ियाँ, मूर्तियाँ, कपड़े, तमिलनाडु शिल्प कला के कुछ सामग्री हैं।

केरल में हाथी दांत, ताड़ के पत्ते, बांस, सीपियां, मिट्टी, नारियल के गोले, धातु, पत्थर, लकड़ी आदि से वस्तुएं बनायीं जाती है। केरल के शिल्प कार्यों में फूलदान, सजावटी प्लेटें, ऐश ट्रे, आभूषण बक्से, नावें, मूर्तियां ,हाथी, मुखौटे, कढ़ाई के काम शामिल हैं।

पांडिचेरी अपनी सुगंधित मोमबत्तियों, हस्तनिर्मित कागज, अगरबत्तियों, मिट्टी के बर्तनों, अचार, चमड़े की वस्तुओं, जैम, खादी वस्त्र, कपड़े, अरोमाथेरेपी उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है |

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