हेलो दोस्तों आज का आर्टिकल मेरे लिए स्पेशल होने वाला है क्युकी आज में आपको उस राज्य से जुडी जानकारी बताने जा रहा हु जिस राज्य में में रहता हु और जिस राज्य को मैंने करीब से देखा है और समझा है | ऐसा राज्य जहा सूरज सबसे पहले आकर अपनी आभा बिखेरता है ऐसा राज्य जहा उच्चे ऊँचे पहाड़ो से लेकर चारो तरफ सुंदरता ही सुंदरता बिखरी पड़ी है |जिसे ऐसा लगता है प्रकृति ने अपने हाथो से सजाया है और सवारा है जी हां में आज बात कर रहा हु अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति एवं अरुणाचल की पूरी जानकारी के बारे में |
अरुणाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जो भारत के सबसे उतर पूर्वी हिस्से चाइना के पास स्थित है | 17 लाख की जनसंख्या वाला यह राज्य इतनी विविधता से भरा हुआ है जितना की पूरी दुनिया का शायद ही कोई राज्य हो इस राज्य में हर महीने 2 -3 अलग अलग जनजातियों के त्योहार बड़े उत्साह से मनाये जाते है अरुणाचल में जहा एक तरफ तवान्ग से शांति प्रिये बुध्दिस्ट से लेकर दोनी पोलो जैसे प्रकृति प्रेमी लोग रहते है |
इतनी विविधता के बावजूद यहाँ पर सभी लोग मिलकर रहते है जो यहाँ की एकता को दर्शाते है यह अरुणाचल की कला और संस्कृति की पहचान है मेरे लिए एक आर्टिकल में सभी चीज़े वरनन करना शायद ही संभव होगा फिर भी में अपनी तरफ से पूरी जानकारी देने की कोशिश करूँगा
Table of Contents
1. अरुणाचल के त्योहार
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति में अब हम त्यौहार पर आ पहुंचे है | कृषि राज्य का प्रमुख व्यवसाय है और इसलिए यहाँ के ज्यादातर त्यौहार कृषि पर आधारित होते है | अधिकांश त्यौहारों के अवसर पर पशुओं की बलि चढ़ाने की प्रथा शामिल होती है। इस छोटे से राज्य मेंइतने ज्यादा उत्सव मनाये जाते है, हर महीने 2 से 3 त्यौहार विभिन जनजातियों द्वारा मनाये जाते है जो यहाँ की विविधता को दर्शाते है |अरुणाचल का सबसे प्रसिद्ध जीरो म्यूज़िक फेस्टिवल हैं जो नॉर्थ ईस्ट की संगीत को बढ़ावा देने के लिए सितंबर में आयोजित किया जाता है |
यहाँ मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में सोलुंग, लोसार, मोपिन, द्री, नेची दाऊ, बौरी बूट, लोकू, लोंगटे युल्लो, खान, क्ष्यत्सोवई, ओजियाल, मोई, न्योकुम, रेह, सैंकन, सी-डोनी । अरुणाचल के त्योहारों में यहाँ के लोगों की जीवनशैली को सूक्ष्म रूप से मिश्रित किया जाता है। इन त्योहारों के पीछे सबसे मत्वपूर्ण उद्देश्य उन सभी लोगों को एक साथ लाना होता है जो दूर-दराज के गांवों में रहते हो ।
उत्सव अरुणाचल प्रदेश राज्य की सांस्कृतिक विरासत और विविधता में एकता को दर्शाते है । वसंत ऋतु का उत्सव विभिन्न समुदायों द्वारा जनवरी से अप्रैल तक मनाया जाता है।ईसाई समुदाय के लोगो द्वारा क्रिसमस डे भी मनाया जाता है इसके अलावा यहाँ दूसरे राज्यों से आये लोगो द्वारा दुर्गा पूजा ,बिहू ,छठ पूजा ,काली पूजा ,होली ,दिवाली,विश्वकर्मा पूजा भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है यह त्यौहार यहाँ इतने घुल मिल गए है की पता ही नहीं चलता की कोनसा किसका त्यौहार है जो यहाँ की एकता को दर्शाते है |
राज्य के कुछ प्रमुख त्यौहारों में अदीस लोगों द्वारा मनाए जाने वाले मोपिन और सोलुंग; मोनपा लोगों द्वारा लोसार . आपतनी लोगों का द्री, तगिनों का सी-दोन्याई; इदु-मिशमी समुदाय का रेह; निशिंग लोगों का न्योकुम आदि हैं।
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2. अरुणाचल की संस्कृति
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति अन्य भारतीय राज्यों से भिन्न है हालाँकि उतर पूर्व राज्यों से काफी हद तक जरूर मिलती जुलती है अगर आधुनिक संस्कृति की बात करे तो यहाँ की संस्कृति अन्य उतर पर्वी राज्यों से मिलती जुलती है क्युकी यहाँ अन्य उतर पूर्वी राज्यों की तरह यहाँ भी शुरू से ईसाई मिशनरियों का प्रभाव रहा है जिससे यहाँ का समाज काफी व्यापक एवं खुला रहा है जिससे यह अन्य हिंदूवादी रूढ़िवादी भारतीय राज्यों से मेल नहीं खाता है |
अरुणचल की पूरी जनसंख्या को उनके सामाजिक-राजनैतिक धार्मिक संबंधों के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया जाता है |यहाँ तीन धर्मों का मुख्य रूप से पालन किया जाता है। कामेंग और तवांग जिले में मोन्पा और शेर्दुक्पेन जो तिब्बती बौद्ध धर्म का लामा परंपरा का पालन करते है दूसरा समूह लम्बे समय से ईसाई मिशनरियों के प्रभाव से ईसाई धर्म को अपना लिया |
यह ज्यादातर शहरी इलाको में , तीसरे समूह में आदि, आका, अपातानी, निशिंग आदि शामिल हैं – जो अरुणाचल की जनसंख्या में एक प्रमुख हिस्सा रखते है, यह अपनी पुरातन मान्यताओं और प्रकृति प्रेमी डोनयी-पोलो (सूर्य तथा चंद्रमा) धर्म की पूजा करते हैं।अपातानी, हिल मिरी और आदि लोगो द्वारा बेंत तथा बांस की आकर्षक वस्तुएँ बनायीं जाती हैं। वांचो लोग लकड़ी तथा बांस पर नक्काशी करके बनाई गई मूर्तियों के लिए जाने जाते हैं।
अरुणाचल प्रदेश में विभिन्न जनजातियों के लोगों की अपनी अपनी अलग वेशभूसा है | बुनाई कला का अपना महत्त्व है एवं प्रत्येक जनजाति की अपनी विशिष्ट शैली है।यहाँ पर 26 से ज्यादा जनजातियाँ और 100 से ज्यादा उपजनजातिया शामिल है | प्रत्येक जनजाति की अपनी वेशभूसा अपने त्यौहार है | नृत्य और त्यौहार, वेशभूसा यहाँ के सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग है।
3. अरुणाचल की जनजातीया
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति – अरुणाचल प्रदेश की जनजातियाँ अरुणाचल की जनसंख्या में महत्वपूर्ण स्थान रखती है | यहाँ पर 26 से ज्यादा जनजातियाँ और 100 से ज्यादा उपजनजातिया निवास करती है जो आदिवासी समुदाय में इसे उत्तर पूर्व का सबसे बड़ा राज्य बनाती है | प्रत्येक जनजाति की अपनी पहचान और अपनी अलग वेशभूसा है फिर भी सभी समुदाय मिलकर रहते है जो इसकी विविधता में एकता को दर्शाते है | यहाँ पर आदिवासी लोग टोकरियाँ बनाने, काम करने, बुनाई, मिट्टी के बर्तन बनाने, लकड़ी की नक्काशी और पेंटिंग बनाने में कौशल होते है |
अरुणाचल की जनजातियों में प्रमुख रूप से आदिस, निशि ,अपातानी,गालो , तागिन ,मिरि ,आदि ,मिश्मी , बुगुन, ह्रासो, सिंगोफोस, मिश्मिस, मोनपा, न्यासी, शेरडुकपेन्स, टैगिन, खामटीस, वानचोस, नोक्टेस, योबिन और खंबस और मेम्बास जैसी जनजातियाँ शामिल हैं।इन सभी जनजातियों द्वारा अलग अलग धर्मो का पालन किया जाता है |
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4. अरुणाचल का इतिहास
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति – प्राचीन इतिहास की बात करे तो ऐसा माना जाता है की कल्कि पुराण तथा महाभारत में अरूणाचल का उल्लेख मिलता है। यह पुराणों में वर्णित प्रभु पर्वत नामक एक स्थान था | जहा पर परशुराम ने अपने पापों का प्रायश्चित किया एवं ऋषि व्यास ने यहां तपस्या की थी राजा भीष्मक ने यहां अपना राज्य स्थापित किया था |
अरुणाचल प्रदेश में अनेक भागों में फैले पुरातात्विक अवशेषों से यह प्रतीत होता है कि इस राज्य की एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा रही है।अरुणाचल का लिखित रूप में कोई इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन मौखिक परंपरा के रूप में कुछ थोड़ा सा साहित्य और ऐतिहासिक खंडहर मिलते हैं । इन स्थानों की खुदाई और विश्लेषण यह मालूम होता है कि यह ईस्वी प्रारंभ होने के समय के हैं। इन प्रमाणों से पता लगता है कि यह जाना-पहचाना क्षेत्र ही नहीं बल्कि जो लोग अरुणाचल में रहते थे और उनका देश के दूसरे भागों से भी करीबी संबंध था।
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति – आधुनिक इतिहास की बाते करे तो आधुनिक इतिहास 24 फ़रवरी 1826 को ‘यंडाबू संधि’ होने के बाद असम में ब्रिटिश शासन लागू होने के बाद से प्रारंभ होता है ।अरुणाचल प्रदेश को सन 1962 से पहले इसको नार्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के नाम से जाना जाता था। संवैधानिक रूप से यह असम का ही एक हिस्सा हुआ करता था परंतु सामरिक महत्त्व होने के कारण 1965 तक यहाँ की देखभाल विदेश मंत्रालय के द्वारा ही होती थी ।
1965 के बाद असम के राज्पाल ने यहाँ के प्रशासन को गृह मंत्रालय के अन्तर्गत कर दिया । सन 1972 में अरुणाचल को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया और इसका नाम नेफा से बदलकर ‘अरुणाचल प्रदेश’ कर दिया गया। इसके बाद 20 फ़रवरी 1987 को इसे भारतीय संघ का 24वां राज्य घोषित कर दिया गया ।
5. अरुणाचल का भूगोल
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति – अरुणाचल का जयादातर हिस्सा हिमालय से ढका हुआ है अरुणाचल के लोहित, चांगलांग और तिरप जिले पतकाई पहाडि़यों मे स्थित हैं। काँग्तो, न्येगी कांगसांग, मुख्य गोरीचन चोटी और पूर्वी गोरीचन चोटी हिमालय की सबसे ऊँची चोटियाँ हैं।
अरुणचल प्रदेश छह प्रमुख प्राकृतिक क्षेत्रों में विभाजित है। कामेंग जिले के पश्चिमी भाग, तिरप जिला, ऊपरी, मध्य और निचले बेल्ट और अरुणाचल प्रदेश की यह छह क्षेत्र हैं जो अरुणाचल प्रदेश की जमीनी आकृति का निर्माण करते हैं।
अरुणाचल प्रदेश छेत्रफल के हिसाब से उतर पूर्व का सबसे बड़ा राज्य है।यहाँ का क्षेत्रफल 83,743 किमी है। अरुणाचल हिमालय की तराई वाले पूर्वी हिमालय से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी तक फैला है। अरुणाचल प्रदेश भूटान, चीन और बर्मा से अपनी सीमा साझा करता है | इसके दक्षिण में असम स्थित है। यहाँ की प्रमुख नदियों में कामेंग , सुबानसिरी , सियांग ( ब्रह्मपुत्र ), दिबांग , लोहित और नोआ दिहिंग नदियाँ हैं।
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6. अरुणाचल की भाषाएँ
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति – अरुणाचल प्रदेश भाषा की दृष्टि से एक बहुभाषी राज्य है जो अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति को दिखाते है | अरुणाचल की आधिकारिक भाषा इंग्लिश है लेकिन हिंदी यहाँ पर विभिन्न जनजाति के लोगो द्वारा सवाद के लिए बोली जाती है यह सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है हिंदी यहाँ पर लोगो को एक दूसरे से जोड़ने का काम करती है अरुणाचल नार्थ ईस्ट में ऐसा पहला राज्य है जहा सबसे ज्यादा हिंदी बोली जाती है इसके अलावा यहाँ पर 50 से अधिक स्थानीय बोलियां बोली जाती हैं, जो इतने छोटे राज्य की विविधता को दर्शाते है |
लेकिन इनमे से कुछ ही ऐसी भाषाएँ जिनकी अपनी लिपि है | यहाँ की स्थानीय भासाओ की लिस्ट काफी लम्बी है में आपको कुछ प्रमुख भासाओ की जानकारी दे रहा हु जो इस प्रकार है अपतानी , इदु मिश्मी भाषा,कमान भाषा,कार्बी भाषा,कोरो,खो-ब्वा भाषाएँ,गालो,चुग भाषा,तानी भाषाएँ ,त्शांगला भाषा,दिगारो ,देओरी ,नोक्टे भाषा,पुरोइक ,पूर्वी भोटी,बुगुन,बोकर,बोरी ,मिडज़ू ,मिसिंग,लिश ,वाँचो ,शेरडुकपेन,सरतंग , आदि प्रमुख है | इसके अलावा यहाँ पर राज्य के बाहरी लोगो द्वारा बंगाली ,असमिया ,नेपाली ,मारवाड़ी ,मणिपुरी , भी बोली जाती है |
7. अरुणाचल के लोक नृत्य
अरुणाचल प्रदेश के लोक नृत्य अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति का अभिन्न अंग है यहाँ के नृत्यों में यहाँ की विविधता की जलक देखने को मिलती है अरुणाचल के लोकनृत्य आदिवासी लोगों के जीवन के उत्साह और आनंद में एक प्रमुख तत्व है। अरुणाचल प्रदेश के लोगों के नृत्य में उनकी खुशी, प्रेम, कृतज्ञता और भावना दिखाई देती है । अरुणाचल के ज्यादातर लोक नृत्य सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक वेशभूषा, सजे हुए भाले और बहुरंगी मोतियों और गहनों से सजे हुए होते हैं।
यहाँ के नृत्य में मार्शल स्टेप्स और लोक नृत्य से लेकर बौद्धों द्वारा किए जाने वाले नृत्य शामिल होते है |यहाँ के कुछ प्रमुख नृत्य इस प्रकार है पोंंग नृत्य,दामिंडा डांस,वांचो डांस,तापु नृत्य,बारडो छम,खांपटी नृत्य,बुईआ नृत्य,रिखमपाड़ा नृत्य,लायन एंड पीक डांस, प्रमुख है अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश लोक नृत्य कोरस गीतों के साथ किये जाते हैं।
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8. अरुणाचल का खानपान
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति में खाने में अरुणाचल में विविधता देखने को मिलती है | अरुणांचल प्रदेश राज्य में प्रत्येक जनजाति का खानपान अलग-अलग है, अरुणाचल अलग अलग सबसे स्वादिष्ट व्यंजन के लिए भी प्रसीद हैं। इसमसालों का प्रयोग अरुणाचल में बहुत कम होता है, अरुणचल का मनपसंद भोजन पत्तों में लिपटे उबले हुए चावल (भात) नाश्ते के रूप प्रसिद्ध है |
अरुणाचल के पूर्वी हिस्से में लोग बांस और अन्य पत्तेदार सब्जियों पर ज्यादा निर्भर होते हैं जिन्हें अच्छी तरीके से उबाला जाता है।
यहाँ तला हुआ भोजन अधिक लोकप्रिय नहीं है क्योंकि यहाँ पर लोग उबला हुआ या स्मोक्ड भोजन खाना पसंद करते हैं। आप तवांग शहर की ओर के स्थानों पर आप देखेंगे कि डेयरी उत्पाद उपयोग अधिक होता हैं यहाँ की मोनपा जनजाति द्वारा थुपका नूडल सूप खाया जाता है। .
1 चावल – अरुणाचल प्रदेश के भोजन में चावल एक प्रमुख भोजन है,जो सभी जनजातियों द्वारा खाया जाता है |
2. बाँस की गोली – स्वादिष्ट बांस के अंकुर उबले हुए सब्जियों, पका हुआ मांस, अचार और चटनी के व्यंजनों में इसका उपयोग किए जाता हैं।
3. पिका पिला – पिका पिला एक अचार का एक प्रसिद्ध प्रकार होता है जो अधिकतर अरुणाचल प्रदेश की अपातानी जनजाति द्वारा खाया जाता है।
4. लुटर – लुटर किंग मिर्च या भुट जोलोकिया से पका हुआ सूखा मांस और मिर्च के गुच्छे का एक मिश्रण होता है।
5. पीक – पीक एक प्रकार की मसालेदार चटनी है जो कि किण्वित सोयाबीन और मिर्च के मिश्रण से बनाई जाती है।
. 6. अपोंग – यह चावल बियर का नाम है और अरुणाचल के सबसे महत्वपूर्ण पारंपरिक पेय में से है |
7. मरुआ- अपोंग की तरह ही, मरुआ भी घर में बनायीं जाने वाली शराब है जो अरुणाचल प्रदेश के व्यंजनों में बहुत फेमस है।
8. चुरा सब्जी- यह एक प्रकार की करी किण्वित पनीर है जो याक के दूध या गाय के दूध से बनाया जाता है |
9. मोमो – मोमोज़ को आप सब जानते ही होंगे यह भी अरुणाचल का प्रसिद्ध फ़ूड है यह आपको सड़क पर या रेस्टोरंट में मिल जायेगा |
10. मांस -मांस अरुणाचल प्रदेश का प्रमुख व्यंजन है। जो अरुणाचल में सभी जनजाति वर्ग द्वारा खाया जाता है |अरुणाचल के लोग अपने मांस को तल कर खाना पसंद नहीं करते हैं, यह या तो उबला या स्मोक्ड करके खाया जाता है |
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9. अरुणाचल प्रदेश की वेशभूषा
अरुणाचल की वेशभूषा उतर भारत के राज्यों से काफी अलग है अरुणाचल में 26 जनजाति वर्ग की अलग अलग वेशभूसा है यहाँ की वेशभूसा में विविधता एवं अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति की जलक दिखाई देती है ,अरुणाचल प्रदेश का वेशभूसा एक लग संस्कृति को प्रदर्शित करती है, अरुणाचल प्रदेश एक पहाड़ी प्रदेश है इसलिए महिलाओ और पुरुषो का पहनावा और वेशभूषा अपने आप में अलग है |
महिलाये अपनी सामान्य दिनचर्या में एक लुंगी पहनती है जिसे वो पानी कमर में लपेट कर रखती है और एक झबला नुमा वस्त्र जो की कमर से ऊपरी भाग में पहनती है , सामान्यत अभी के पुरुष वर्ग अब पेंट शर्त पहनने लगे है किन्तु गावो में पुराणी पीढ़ी के लोग जो घुटनो से ऊपर तक घोटी और उसके ऊपरी भाग के लिए एक फ़टका पहनते है।
जनजातिये उत्सवों के समय, इन वस्त्रो में कुछ और अलंकार आ जाता है, और उनके साथ में कुछ पक्षीय पंखो के साथ ये अपने सर में धारण करते है, और पुरुष वर्ग भी कुछ ऐसी ही वेशभूसा पहनते है, कमर के एक आलावा फाटक बांध कर अपने अधोवस्त्र का खिसकना रोक लेते है, यह वेशभूषा पहनकर उत्सवों में नृत्य का कार्यक्रम किया जाता है।
10. अरुणाचल में शिल्प कला
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति में अब हम शिल्प कला की बात करेंगे |अरुणाचल प्रदेश के लोगों में कलात्मक शिल्प कौशल की परंपरा एवं विविधता दिखाई देती है। शिल्प के आधार पर इसको तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। पहले क्षेत्र में बौद्ध जनजातीया ,दूसरे में अपातानी, हिल मिरिस और आदिस , तीसरा छेत्र दक्षिण पूर्वी भाग में बसता है।
जो लोग पहले छेत्र से समंध रखते है वे सुंदर मुखौटे बनाते हैं। मोनपा सुंदर कालीन, चित्रित लकड़ी के बर्तन और चांदी के लेख बनाने के लिए प्रसिद्ध है |
दूसरे ज़ोन से संबंध रखने वाले लोग बेंत और बांस के विशेषज्ञ के रूप में प्रसिद्ध है । दूसरा सांस्कृतिक क्षेत्र पश्चिम में पूर्वी कामेंग जिले से लेकर पूर्व में लोहित जिले तक है। यह उन वस्तुओं को बनाते हैं जो उनके दैनिक जीवन में उपयोग आती हैं। अपातानी, एडिस गेल और शोल्डर बैग और मिश्मी के कोट और शॉल के शॉल और जैकेट इन लोगों की उच्च कलात्मक चीज़े हैं।
तीसरे जोन से सम्बंधित लोग अपनी लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध हैं। वान्चो सुंदर बैग और लोई का कपड़ा बुनते हैं। बकरी के बाल, हाथी दांत, सूअर के मांस और अन्य पत्थर के साथ-साथ पीतल और चश्मा बनाने के लिए प्रसिद्ध है
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11. अरुणाचल का पर्यटन
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति – अरुणाचल प्रदेश पर्यटकों के लिए एक स्वर्ग है आप एक बार घूम के अरुणाचल को एक्सप्लोर नहीं कर सकते |आर्किड के खिले हुए फूल, बर्फ से ढंकी पहाड़ों की चमचमाती चोटी, खूबसूरत वादियां, जंगल के पत्तों की सरगोशियां, तंग जगहों से पानी का घुमावदार बहाव, तवांग में बौद्ध साधुओं के भजन की पावन ध्वनि और उनका अतिथि-सत्कार. यह सब पर्यटकों के लिए कभी नहीं भुला देने वाली पल है.।
विविध प्रकार की वनस्पति और जीव-जंतु अरुणाचल प्रदेश की मुख्य विशेषता एवं विविधता को दर्शाते है। सच में इस प्रदेश की यात्रा आपको कभी नहीं भूलने वाला एहसास करा देती है और आप यहाँ से प्रभावित होकर यही बस जाना चाहेंगे |
अरुणाचल प्रदेश को भारत का आर्किड स्वर्ग भी कहा जाता हैं। यहां 500 से ज्यादा प्रजाति के आर्किड मौजूद हैं, जो कि पूरे भारत में पाए जाने वाली आर्किड प्रजाति का आधा हिस्सा रखते है।
अरुणाचल प्रदेश में पक्षियों की 500 से अधिक प्रजातियाँ देखने को मिल जाती हैं आप सोच सकते है इस छोटे से प्रदेश में कितना अधिक है |अरुणाचल प्रदेश में एडवेंचर टूरिस्म के लिए भी काफी अवसर है | किंग, रीवर राफ्टिंग और एंगलिंग (कांटा लगा कर मछली पकड़ना) यहां के तीन प्रमुख एडवेंचर हैं।
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अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में स्थित ईटानगर वन्य जीव अभ्यारण्य और ईटा किला ,गंगा झील, चर्चित पर्यटन स्थल हैं। अरुणाचल प्रदेश के प्रसीद पर्यटन स्थलों में तवांग, आलोंग, जीरो, बोमडिला, पासीघाट , भालुकपोंग ,रोइंग, खोंसा ,यिंगकिओनग ,मेचुका,आदि प्रमुख है। इसके आलावा अन्य घूमने लायक जगह पखुई वन्यजीव अभयारण्य ,नूरनांग जलप्रपात ,गोरीचेन पीक,सेला दर्रा ,माधुरी झील, आदि प्रमुख है |
12. अरुणाचल प्रदेश कैसे जाये –
अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति आज के समय में अरुणाचल की यात्रा करना कोई मुश्किल काम नहीं है क्योंकि यह राज्य पर्यटक परिवहन के सभी साधनों अच्छी तरह जुड़ा हुआ है | देश के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई और कोलकाता सहित सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है |
1. हवाई जहाज से
अरुणाचल प्रदेश के लिए कोलकाता और गुवाहाटी से जुड़े असम में लीलाबरी (उत्तर लखीमपुर), तेजपुर हवाई अड्डा सबसे निकटतम है,यहाँ से 260 किमी गाड़ी या बस से अरुणाचल पहुँच सकते है। आप दिल्ली, मुंबई और पुणे सहित देश के बाकी सहरो से कोलकाता या गुवाहाटी के लिए सीधी उड़ानसे आ सकते हैं।अभी ईटानगर का भी हवाई अड्डा निर्माणधीन है जो कुछ समय बाद बन कर तैयार हो जयेगा | उसके बाद आप सीधा ईटानगर फ्लाइट से आ सकते है |
2. अरुणाचल ट्रेन से
अरुणाचल की राजधानी के पास स्थित उपनगर नहारलगुन ट्रैन से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है यहाँ से आपको आसाम की राजधानी गुवाहाटी एवं दिल्ली से ट्रैन से आ सकते है ये ट्रेने डेली चलती है | इसके आलावा यह असम के अन्य सहरो से भी जुड़ा हुआ है
3. अरुणाचल सड़क से
अरुणाचल सभी अन्य शहरों और आसपास के राज्यों से सड़क द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। अरुणाचल से देश के दूसरे राज्यों जैसे मेघालय (लगभग 790 किमी), असम (560 किमी) और नागालैंड (456 किमी) से अन्तर्राजीय बस सेवाएं उपलब्ध हैं।यह नार्थ ईस्ट के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी से भी जुड़ा है |
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आज के आर्टिकल में हमने “अरुणाचल प्रदेश की कला और संस्कृति एवं अरुणाचल की पूरी जानकारी “के बारे में मेने जितना हो सके आपको सही सही जानकारी दी है उम्मीद है आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा अगर कोई त्रुटि हो या आपके मन में सवाल हो तो हमने कमेंट करके जरूर बताये ||
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