आज हम त्रिपुरा राज्य से जुडी जानकारी आपको साझा करने वाले है और त्रिपुरा की कला और संस्कृति और इससे जुडी सभी प्रकार की जानकारी को विस्तार से जानेंगे
त्रिपुरा उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित भारत का एक छोटा सा राज्य है।जो छेत्रफल के साथ साथ जनसंख्या में भी काफी छोटा है , लेकिन बहुत खूबसूरत है |प्रकृति ने त्रिपुरा को बहुत कुछ दिया त्रिपुरा प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी भी स्वर्ग से कम नहीं है |
ऐसे ही खूबसूरत त्रिपुरा के बारे में विस्तार से जानेंगे साथ ही त्रिपुरा की कला और संस्कृति पर भी प्रकाश डालेंगे तो आइये जानते है त्रिपुरा के बारे में –
1. त्रिपुरा का इतिहास
त्रिपुरा की कला और संस्कृति में हम त्रिपुरा के इतिहास की बात करेंगे त्रिपुरा का अपना बड़ा पुराना और लंबा इतिहास रहा है।14वीं शताब्दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा के नरेश की मदद किए जाने से इसका इतिहास मिलता है| त्रिपुरा के शासकों को मुगलों के बार-बार आक्रमण का सामना करना पड़ा था |अनेक प्रकार की लड़ाईया में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्तानों को कई बार हराया है ।
19वीं शताब्दी में महाराजा वीरचंद्र किशोर माणिक्य बहादुर के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग का आरम्भ हुआ। उन्होने ब्रिटिश भारत के नमूने को अपनाया और उनमे कई सुधार लागू किए। उन्होंने 15 अक्तूबर, 1949 तक त्रिपुरा पर राज किया । इसके बाद त्रिपुरा का भारत संघ में विलय हो गया।शुरूवात में यह भाग-सी के अंतर्गत एक भारतीय राज्य था और उसके बाद 1956 में राज्यों के पुनर्गठन होने के बाद इसको केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया ।सन्न1972 में इसको पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया ।
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2. त्रिपुरा का भूगोल
त्रिपुरा भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है जिसका क्षेत्रफल लगभग 10491 वर्ग किमी है। त्रिपुरा के उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में बांग्लादेश है जबकि पूर्व में असम और मिजोरम राज्य की सीमा लगती हैं।त्रिपुरा मध्य से और उत्तर से एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसे पूर्व से पश्चिम की ओर चार प्रमुख घाटियाँ, धर्मनगर, कैलाशहर, कमालपुर और खोवाई,इसको काटती हैं। जबकि पश्चिम व दक्षिण की निचली घाटियाँ खुली और दलदली हैं, फिर भी दक्षिण में भूभाग बहुत अधिक कटा हुआ और घने जंगलों से ढका हुआ है।
त्रिपुरा को उत्तर से दक्षिण की ओर उन्मुख श्रेणियाँ घाटियों को काटती हुई अलग करती हैं।सन 2011 के अनुसार त्रिपुरा राज्य की जनसंख्या लगभग 36 लाख 71 हजार थी। अगरतला त्रिपुरा की राजधानी एवं सबसे बड़ा शहर है। बंगाली और त्रिपुरी भाषा यहाँ प्रमुखता से बोली जाती है |
3. त्रिपुरा का परिवहन
सड़क मार्ग
त्रिपुरा में विभिन्न प्रकार की सड़कों की कुल लंबाई 15,227 कि.मी.तक है,
जिसमें से मुख्य जिला सड़कें 454 कि.मी एवं अन्य जिला सड़कें 1,538 कि॰मी॰ हैं।
रेल मार्ग
त्रिपुरा में रेल मार्गो की कुल लंबाई 66 कि॰मी॰ तक है। रेलवे लाइन को मानूघाट तक बढा दिया गया है एवं अगरतला तक रेलमार्ग से पहुंचने का काम पूरा हो चूका है और इस रेल लाइन (88 कि.मी.) को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया गया है ।
साथ ही अगरतला-सबरूम संपर्क रेल लाइन विस्तार के कार्य को केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी मिल गयी है।
हवाई मार्ग
त्रिपुरा का प्रमुख हवाई अड्डा अगरतला में स्थित है।
अगरतला कोलकाता (पश्चिम बंगाल) और असम के विभिन्न नगरों से वायु मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा त्रिपुरा से अन्य शहरो को भी वायु सेवा से जोड़ने का काम जारी है |
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4. त्रिपुरा में पर्यटन
त्रिपुरा की कला और संस्कृति – त्रिपुरा हर दृष्टि से पर्यटन के लिहाज से सम्पन राज्य है। त्रिपुरा में अनेक पर्यटन स्थल मौजूद हैं। यहाँ देखने एवं घूमने-फिरने के लिए आपको अनेक प्रकार के स्थान एवं स्थल मिल जायँगे। यह राज्य बाकी पूर्वोत्तर राज्यों के मुकाबले पर्यटन की अधिक संभावनाओं से परिपूर्ण है। यह राज्य पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा बांग्लादेश जाने वाले पर्यटक को भी आकर्षित करता हैं। इसलिए होटल उद्योग के विकास के साथ साथ यहां पर्यटन की संभावनाएं भी काफी बढ़ी हैं।
त्रिपुरा में पर्यटन की अपार सम्भावनाये मौजूद है और यह पर्यटकों के लिए एक स्वर्ग है |कोलकाता व गुवाहाटी से राजधानी अगरतला तक वायुमार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। त्रिपुरा में खोवाल, कमालपुर और कैलाशहर तीन छोटे हवाई अड्डे मौजूद हैं।
त्रिपुरा के कुछ पर्यटन स्थल की सूची
उज्वंत पैलेस
उज्वंत पैलेस त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में मौजूद है। यह शहर के बीच में स्थित है तथा लगभग एक किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। यह महाराजा राधा किशोर मणिक बहादुर द्वारा सन् 1899-1901 के मध्य बनवाया गया । वर्तमान में यहा राज्य विधानसभा मौजूद है।
कुंजभवन
कुंजभवन का निर्माण सन् 1917 में महाराजा बीरेंद्र किशोर मनिक बहादुर ने करवाया था। सन् 1926 में रवींद्ररनाथ टैगोर जब अगरतला गए थे तो वह कुंजभवन में ही रुके थे। अभी इसका उपयोग राज्यपाल के सरकारी निवास स्थान के रूप में होता है |
जगन्नाथ मंदिर त्रिपुरा
यह मंदिर स्थापत्य कला का अनूठा नमूना पेश करता है। इसे देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से आते है।यह त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में स्थित है |
राज्य संग्रहालय
इस संग्रहालय में आप त्रिपुरा के प्राचिन इतिहास व संस्कृति से संबंधित दुर्लभ वस्तुओ की जलक देख सकते है । त्रिपुरा पर्यटन की यात्रा पर आने वाले ज्यादातर पर्यटक यहा जरूर आते है।आपको भी यहाँ जरूर जाना चाहिए |
ब्रह्मकुंड
ब्रह्मकुंड त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 45 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यहा हर वर्ष मार्च अप्रैल और नवंबर के मेलो का आयोजन होता है ।
कमला सागर झील
कमला सागर एक बहुत ही खुबसूरत एवं बड़ी झील है। यहाँ की एक पहाडी पर काली मां का मंदिर भी है। यहाँ हर वर्ष अक्टूबरर माह में मेले का आयोजन होता है।
त्रिपुर सुंदरी मंदिर
त्रिपुरा पर्यटन सूची में यह मंदिर त्रिपुरा का प्रसिद्ध मंदिर है। हिन्दू धर्म में त्रिपुर सुंदरी का बडा महत्व होता है। क्युकी यह 51 शक्तिपीठो में से एक है। ऐसा मान्यता है कि यहा देवी सती की देह का दायां पैर गिरा था। प्रतिवर्ष यहा लाखो श्रृद्धालु दर्शन करने आते है। त्रिपुर सुंदरी मंदिर त्रिपुरा की राजधानी आगरतला से 55 किलोमीटर की दूरी पर है।
अन्य कुछ पर्यटन स्थल इस प्रकार है –
सेफाजाला
नील महल
उदयपुर
पिलक
महामुनि
अगरतला,
उनोकोटि
जामपुई हिल
5. त्रिपुरा के संगीत और नृत्य
क्युकी किसी भी राज्य की संस्कृति बिना नृत्य और सगीत के अधूरी होती है |इसलिए त्रिपुरा की कला और संस्कृति भी संगीत एवं नृत्य के बिना अधूरी होगी | त्रिपुरा के स्थानीय संगीत के वाद्ययंत्र जैसे :- सुमुई, जो एक प्रकार की बांसुरी होती है। दूसरा ‘खंम’ जो एक तरह का ड्रम होता है। इसके अलावा यहा के वाद्ययंत्रो में तारा आधारित ‘सांरिडा’ और चोंगपाएंग भी प्रमुख है। त्रिपुरा के भिन्न भिन्न समुदायो के अपने स्वंय के गाने, लोकगीत और नृत्य है। जो अपनेप्रमुख अवसरो जैसे:- शादिया, धार्मिक संस्कार, और त्यौहारो पर प्रस्तुत किए जाते है। त्रिपुरा के लोगो का गरिया नृत्य जो एक प्रकार का धार्मिक नृत्य माना जाता है।
जबकि रियांग समुदाय के लोग अपने होजगिरि नृत्य के लिए प्रसिद्ध है। जो युवा लडकियो के मातृत्व पिचर पर आधारित होता है। इसके अलावा राज्य में कई अन्य प्रकार के नृत्य जैसे :- त्रिपुरी समुदाय का लीबांग नृत्य, चाक समुदाय का बिझू नृत्य, गारो समुदाय का वागला नृत्य, हलाक कुकी समुदाय का हाई हक नृत्य और भोंग समुदाय का ओवा नृत्य शामिल है जो यहाँ की विविधता में एकता को दर्शाते है |
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6. त्रिपुरा के त्यौहार (त्रिपुरा की कला और संस्कृति)
त्रिपुरा की कला और संस्कृति में अब हम आ पहुंचे है त्रिपुरा के त्यौहार पर । त्रिपुरा में काफी हद तक हिन्दूओ धर्म का प्रभाव है। इसलिए यहा त्यौहार वही ज्यादा मनाएं जाते है जो शेष भारत में मनाए जाते है। त्रिपुरा के प्रमुख त्यौहार में दुर्गा पूजा जो दशहरा के वक्त मनाया जाता है। इसके अलावा खर्ची पूजा, दिवाली, डोल जात्रा (होली) पोस संक्रांति, अशोकष्टमी और बुद्ध जयंती, ईद, क्रिसमस और नए साल के जश्न बढ़ी धूम धाम से मनाए जाते है। इनके अलावा आदिवासी तयोहार जैसे गरिया, केर गंगा, और गजन उत्सव प्रमुखता से मनाये जाते है।
अशोकष्टमी के दौरान उन्नोकोटी में विशेष आयोजन किया जाता है वही पुराने अगरतला में चौदह देवी मंदिर अपनी खर्ची पूजा के लिए पर्यटकों को आकर्षित करता है। इसी तरह पोस संक्रांति के मोके पर तीर्थमुल भी त्रिपुरा पर्यटकों को आकर्षित करता है | अगर देखा जाये तो त्रिपुरा राज्य में प्रत्येक जनजाति के अपने नृत्य और त्यौहार है। जो बड़े उत्साह से मनाये जाते है और यह यहाँ की विविधता को दर्शाते है |
7.त्रिपुरा के त्यौहार
त्रिपुरा की कला और संस्कृति – त्रिपुरा के पहनावे में पुरुषों के लिए पारंपरिक पोशाक एक तौलिया होता है, जिसे रिकुतु गाचा के रूप में भी जानते है कुबै एक प्रकार की शर्ट होती है त्रिपुरा में पुरुष कुकू के साथ रिक्तु गाचा पहनते हैं। जबकि गर्मी के दौरान गर्मी से बचने के लिए त्रिपुरा के पुरुष अपने सिर पर पगड़ी पहनते हैं।त्रिपुरा में भी पश्चिमी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है यहां भी पश्चिमी संस्कृति को प्रभावित करने वाले लोग, विशेष रूप से आज युवा पीढ़ी जींस, पायजामा, शर्ट्स और टी-शर्ट और आधुनिक जीवन शैली की वेशभूषा के विभिन्न प्रकार के कपडे पहनते है |
त्रिपुरा में जहा तक महिलाओ के पहनावे की बात है तो त्रिपुरा की महिलाए का परिधान एक बडे कपडे के समान होता है जिसको महिलाए अपने कमर से लेकर घुटनो तक लपेटे होती है। इस कपडे पर सुंदर हस्त कला की कढाई की होती है। जिसे खाक्लू कहा जाता है। इसके साथ ही महिलाए ब्लाउज पहनती है।.इसके साथ ही गले को आकर्षक दिखाने के लिए महिलाए सिक्का और मोतियो से बने हार गले में पहनती है।इसके अलावा उत्सवो में आकर्षक दिखने के लिए सुंदर गहने भी पहने जाते है |
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8. त्रिपुरा का खाना
त्रिपुरा की कला और संस्कृति – त्रिपुरा तीन ओर से बंगलादेश की सीमा से घिरा होने के कारण त्रिपुरा के खाने में बंगलादेशी मिश्रण देखा जाता है यहा के लोग ज्यादातर मछली, चावल और सब्जियो पर निर्भर होते है। इसके अलावा मटन, चिकन और सूअर के मीट के साथ मास यहा के भोजन में शामिल है । मुई बोरोक, बागुली चावल, मछली स्टोज, बांस की मारिया, किण्वित मछली, मांस के रोस्टज त्रिपुरा के प्रमुख खानो मे से एक है। मुई बोरोक त्रिपुरा की बेहद स्वादिस्ट डिश है।
त्रिपुरा के भोजन में चावल की मात्रा ज्यादा रहती है।यदि आप रोटी खाने के शौकीन है तो त्रिपुरा की यात्रा में आपको रोटी कम ही देखने को मिलेगी। त्रिपुरा के स्थानीय होटलो में भी चावल का उपयोग काफी ज्यादा होता है |
आज हमने जाना त्रिपुरा की कला और संस्कृति और इससे जुडी पूरी जानकारी को अगर आपको हमारी पोस्ट अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताये या अगर कोई जरुरी जानकरी छूट गयी हो तो भी कमेंट करके जरूर बताये |
Thanks for the good article, I hope you continue to work as well.