दोस्तों में आपको पुरे भारत और सारी दुनिया विशेषकर राजस्थान की कला और संस्कृति से आपको अवगत करना चाहता हु ताकि आपको देश की विविधता के बारे में जान सके और देश और दुनिया पर गर्व हो इसीलिए में आपको एक ऐसे राज्य की संस्कृति के बारे में अवगत कराने आया हु जो राज्य अपनी शाही अंदाज़ और राजा महाराजाओ के इतिहास के लिए जाना जाता है इसीलिए आज हम राजस्थान की कला और संस्कृति के बारे में विस्तार से जानेंगे
Table of Contents
1. राजस्थान का इतिहास
राजस्थान का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से प्रारंभ होता है जो की आज से इसा पूर्व 3000 से 1000 के बीच माना जाता है जब सिंधु घाटी सभ्यता अस्तित्व में थी 12वीं सदी तक राजस्थान के ज्यादातर भाग पर गुर्जरों का अधिपत्य रहा है। गुजरात तथा राजस्थान का अधिकांश भाग को गुर्जरो से रक्षित राज्य के नाम से जाना जाता था।गुर्जर आदिवासी ने 300 सालों तक पूरे उत्तरी-भारत को अरब के लोगो से बचाया था।]बाद में जब राजपूतों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो यह क्षेत्र ब्रिटिशकाल में राजपूताना के नाम से जाना जाने लगा |उसके बाद 12वीं शताब्दी में मेवाड़ पर गहलोतों ने शासन किया। मेवाड़ के अलावा जो अन्य प्रमुख रियासतें – भरतपुर, जयपुर, बूँदी, मारवाड़, कोटा, और अलवर है। इन सभी रियासतों ने 1818 मे अंग्रेजो की संधि स्वीकार कर ली जिसमें राजाओं के हितों की रक्षा की बात की गयी थी लेकिन आम जनता इसको सहमत नहीं थी |
सन् 1935 में ब्रिटिश शासन वाले भारत में प्रांतीय स्वायत्तता लागू होने के बाद राज्य में नागरिक स्वतंत्रता तथा राजनीतिक अधिकारों के लिए आंदोलन तेज़ हो गया। परिणाम सवरूप 1948 में इन बिखरी हुई रियासतों को एक करने की कोशिस शुरू हुई, जो 1956 में राज्य में पुनर्गठन क़ानून लागू होने पर ख़तम हुई | सन्न 1948 में ‘मत्स्य संघ’ का गठन हुआ जिसमें कुछ रियासतें शामिल हुईं उसके बाद बाकी रियासतें भी इसमें शामिल हो गयी। सन् 1949 आते आते बीकानेर, जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर जैसी बड़ी रियासते इसमें शामिल हो गयी थीं बाद में 1958 में अजमेर, आबू रोड तालुका और सुनेल टप्पा के विलय के बाद सम्पूर्ण राजस्थान राज्य अस्तित्व मैं आया |
2. राजस्थान का भूगोल
भौगोलिक छेत्रफल के हिसाब से देखा जाये तो राजस्थान देश का सबसे से बड़ा राज्य है | राजस्थान का भौगोलिक छेत्रफल 342239 वर्ग किमी है जो भारत के कुल छेत्रफल का 10.41 प्रतिशत है | यह भाग विश्व के प्राचीनतम भूखंडो गोंडवाना लैंड का अपशिस्ट भाग है | यह राज्य देश के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित एक मरुस्थलीय प्रदेश है इसके पूर्वोतर भाग में पंजाब , हरियाणा एवं उत्तरप्रदेश दक्षिण पूर्व में मध्यप्रदेश एवं दक्षिण पश्चिम में गुजरात राज्य से घिरा हुआ है | राजस्थान की पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा लगती है |
अरावली पर्वत श्रंखला राज्य के मध्य भाग से होते हुए दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की और फैली हुई है |
राजस्थान का पश्चिमी भाग मरुस्थलीय एवं अर्धमरुस्थलीय है इस भाग को ग्रेट इंडियन डेज़र्ट थार के नाम से भी जाना जाता है |
पहाड़ियाँ राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में 1,722 मीटर ऊँचे गुरु शिखर से पूर्वोत्तर में खेतड़ी तक विस्तार है । राजस्थान का करीब 3/5 भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में ओर शेष 2/5 भाग दक्षिण-पूर्व में स्थित है। राज्य के ये दो प्राकृतिक विभाजन हैं। बहुत ही कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूमि रेतीली है। इस क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा थार रेगिस्तान है।
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3. राजस्थान के त्यौहार
त्यौहार राजस्थान की कला और संस्कृति की समृद्धि को सुशोभित करते हैं, जिससे राजस्थानियों का जीवन रंग और उत्सव से भरा हुआ दिखाई पड़ता है। भारत के सभी मुख्य त्योहारों जैसे दिवाली, होली, और जन्माष्टमी को राजस्थान में भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं। सभी राजस्थानी मेलों और त्योहारों में राज्य की पारंपरिक परिधान, लोक गीत, लोक नृत्य और विभिन्न आकर्षक प्रतियोगिताएं प्रमुखता से दिखाई जाती हैं।विशेषकर अगर रेगिस्तानी त्यौहार जो राजस्थानी संस्कृति के लिए बहुत अहम् हैं जिसमे राजस्थानी संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है। त्योहार समाप्त होने के बाद राजस्थान में कई पारंपरिक मेलों का आयोजन किया जाता है। राज्य के त्योहार पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं और बड़ी संख्या में देसी और विदेशी पर्यटक यहाँ की संस्कृति को जानने आते है |
मेले का आयोजन भी मस्ती के साथ और मस्ती के लिए किया जाता है। सपेरों, कठपुतलियों, कलाबाजों और कलाकारों मेले में पर्यटकों का मनोरंजन करते है | ऊंट राजस्थान में देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होते है क्युकी मेले में कुछ अद्भुत गेम ऊंटों द्वारा ही किए जाते हैं । अन्य प्रमुख आयोजनों में मूंछें और पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताएं होती हैं | राजस्थान राज्य के कुछ प्रमुख त्योहारों और उत्सवों की बात करे तो डेजर्ट फेस्टिवल, मेवाड़ महोत्सव, तीज, गणगौर, मारवाड़ महोत्सव, पुष्कर ऊंट मेला, राजस्थान अंतर्राष्ट्रीय लोक उत्सव, हाथी महोत्सव, ग्रीष्मकालीन महोत्सव् , महावीरजी मेला, इस प्रकार है इनका विस्तार से बताना मेरे लिए इस छोटे से आर्टिकल में संभव नहीं होगा इनके लिए में अलग से आर्टिकल लिखूंगा
4. राजस्थान का खाना
राजस्थान की कला और संस्कृति में अगर बात खाने की करे तो यह एक विशेष स्थान रखता है |
राजस्थानी खाना मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन होता है क्युकी राजस्थान में शाकहारी लोगो की संख्या सबसे अधिक है | राजस्थानी खाना पूरी दुनिया में अपने सवाद के लिए जाना जाता है |अगर देखा जाए तो राजस्थान के लोग मसालेदार खाना ज्यादा खाते हैं इसका कारण है राजस्थानी पारम्परिक खाने में उस समय हरी सब्जियों की कम उपलव्धता के कारण इनका प्रयोग कम ही हुआ है राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितयो की वजह से राजस्थानी खाने में बेसन, दाल, मठा, दही, सूखे मसाले, सूखे मेवे, घी, दूध का अधिक से अधिक प्रयोग होता है। हालाँकि राजस्थानी मिठाईयां भी काफी अलग तरह से बनायीं जाती है |
राजस्थानी लोकप्रिय खानो में बाजरे की रोटी और लहसुन की चटनी , दाल-बाटी चूरमा, भुजिया और केर ,सान्गरी की सब्जी ,हल्दी का साग ,गट्टे की सब्जी, पंचकूट, आदि शामिल है |
राजस्थानी मिठाइयों की बात करे तो बीकानेरी रसगुल्ला, मावा मालपुआ ,घेवर, फीणी, तिल के लढू, लापसी
बालूशाही आदि प्रमुख है |
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5. राजस्थान के लोकनृत्य
राजस्थान में विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य देखने को मिलते है जो राजस्थान की कला और संस्कृति को दर्शाते है |यहाँ पर अलग अलग जगहों अलग अलग नृत्य प्रचलित है यह नृत्य मानवीय अभिव्यक्ति का अद्भुत प्र्दशन है राजस्थान के लोकनृत्यों में शास्त्रीय नृत्यों के जैसे ताल , लय, व्याकरण ने नियमो का सख्ती से पालन नहीं किया जाता है इनको हम देसी नृत्य भी बोल सकते है | राजस्थान के लोकनृत्यों में यहाँ के प्रकृतिक वातावरण , नदिया यहाँ के वनो , मरुस्थलों , एवं जलवायु से प्रभावित मानव जीवन का चित्रण दिखाई पड़ता है एवं प्रदेश की भौगोलिक परिस्तिथि एवं सामाजिक बंधनो का भी असर दिखाई देता है |
राजस्थान के लोकनृत्यों की काफी लम्बी लिस्ट है जिसमे छेत्रीय नृत्य इस प्रकार है घूमर नृत्य , ढोल नृत्य , झूमर नृत्य ,चंग नृत्य , घुड़ला नृत्य , अग्नि नृत्य,गरबा नृत्य,सूकर नृत्य ,बिंदौरी नृत्य,नाहर नृत्य , खारी नृत्य, गैर नृत्य ,नाहर नृत्य , खारी नृत्य ,भैरव नृत्य ,चरकूला नृत्य ,हिंडोला नृत्य, आदि प्रमुख है | इसके अलावा व्यवसायिक लोकनृत्यों में भवाई नृत्य, तेरहताली नृत्य,कच्छी घोड़ी नृत्य आदि है | इसके अलावा भी राजस्थान के जातीय और जनजातीय नृत्यों की भी काफी लम्बी लिस्ट है |
राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध नृत्य घूमर नृत्य है जो मारवाड़ छेत्र में स्त्रियो द्वारा किया जाता है यह राजस्थान का राजकीय लोकनृत्य नृत्य है |
6. राजस्थान का संगीत
राजस्थान की कला और संस्कृति में संगीत भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्युकी राजस्थान में लोकसंगीत की एक पुरानी एवं लम्बी परम्परा रही है यहाँ के ज्यादातर लोकगीत धार्मिक रीति-रिवाजों, त्योहारों, मेलों और देवताओं को समर्पित होते है ।
राजस्थान में संगीत अलग-अलग जातियों के हिसाब से अलग अलग होता है ,राजस्थान लोकसंगीत में जातियां की बात करे तो इसमें लांगा ,सपेरा , मांगणीयरभोपा और जोगी आदि आती है | यहां संगीत की दो परम्परागत कक्षाएं आती है जिसमे एक लांगा और और दूसरी मांगणीयर है | राजस्थानी पारम्परिक संगीत में महिलाओं का गाना भी काफी प्रसिद्ध है जिसको (पणीहारी) के नाम से जाना जाता है। इनके अतिरिक्त अलग अलग जातियों द्वारा अलग-अलग तरीकों से गायन किया जाता हैं।
जिसमे सपेरा बीन बजाकर सांप को नचाता दिखाई देता है तो भोपा फड़ में गायन करता नजर आता है। राजस्थान के संगीत लोकदेवाताओ पर भी काफी केंद्रित होते है जिसमें प्रमुख रूप से पाबूजी ,बाबा रामदेव जी ,तेजाजी जैसे लोकदेवाताओं पर भजन गाये जाते है।राजस्थान के प्रमुख संगीत क्षेत्र की बात करे तो जोधपुर ,जयपुर ,जैसलमेर तथा उदयपुर आदि हैं।
7. राजस्थान की प्रमुख जनजातीया
ऐसे देखा जाये तो राजस्थान में जनजातियों की संख्या ज्यादा नहीं है राजस्थान की कुल जनसंख्या का 12 % हिस्सा ही जनजातियों का है इसमें भी राजस्थान की दो प्रमुख आदिवसीय समुदाय भील और मीणा राजस्थान में बड़ी संख्या में निवास करते है | भील और मीणा की जनसंख्या राजस्थान के विंध्य, अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बड़ी संख्या में है। राजस्थान की जनजातीया अपने आप में एक दूसरे से काफी अलग होती है | अपनी आजीविका चलाने के लिए राजस्थान की जनजातीय मुख्य रूप से खेती पर निर्भर होती है | राजस्थान की जनजातियों में भील ,मीणा , सहारिया, गरासिया ,गादिया लोहार ,सांसी ,डामोर , कथोरी ,कंजर आदि प्रमुख है |
राजस्थान की अनुसूचित जनजाति में भील और गादिया लोहार मुख्य रूप से आती है | मीणा जनजाति को सिंधु घाटी सभ्यता के लिए भी जाना जाता है |
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8. राजस्थान की संस्कृति( राजस्थान की कला और संस्कृति )
राजस्थान की कला और संस्कृति पश्चिमी भारत की रंगीन संस्कृति, लोक गीत और नृत्य एवं इतिहास की रंगीन यादे बयां करती है |
राजस्थानी संस्कृति विरासत और जातीयता से समृद्ध है और कलात्मक और सांस्कृतिक परंपराओं से परिपूर्ण जो हमे प्राचीन भारतीय मार्ग की और ले जाती है | राजस्थानी संस्कृति पर विभिन शाही राजवंशो और समुदायों एवं शासको का इसको जोड़ने में योगदान रहा है |राजस्थान एक राजसी राज्य होने की वजह से अपने शाही भव्यता और रॉयल्टी के लिए दुनिया भर में जाना जाता है |
राजस्थान पुरानी परंपराओं, संस्कृति, लोगों और विशेष रूप से पहनावे ऐतिहासिक स्मारकों के साथ पूरी दुनिया से पर्यटकों को अपनी और खींचता है।संगीत दिन-प्रतिदिन संबंधों और कामकाज अधिक अक्सर ध्यान केंद्रित कुओं या तालाबों से पानी ला रहे लोगो की और ध्यान केंद्रित करता है | राजस्थान की संस्कृति में थार रेगिस्तान, ऊंट की सवारी, घूमर और कालबेलिया नृत्य और रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान , पगड़ी पहने लोग आते हैं।
9. राजस्थानी लोगो की वेशभूसा
राजस्थान की कला और संस्कृति – राजस्थानी लोग अपने विशेष पहनावे के लिए जाने जाते है | यहाँ के पारम्परिक लोगो को रंगीन कपड़े, पगड़ी और साड़ियों जो पत्थरों और घृंगुओं से सुशोभित होती है पहनना पसंद होता है | राजस्थान में कई प्रकार की जाति एवं जनजातीया निवास करती है इसलिए छेत्र के अनुसार इनका पहनावा भी थोड़ा अलग होता है |राजस्थान के ग्रामीण छेत्रो में रहने वाले लोगो में औरतें-घाघरा कुर्ती तथा पुरुष- धोती,कुर्ता पेंट एवं जोधपुरी सफा’ या ‘जयपुरी पगड़ी’ के रूप में जाने वाली पगड़ी पहनते हैं। जो उनकी वेशभूसा एवं पहचान प्रतीक है। अनग्रक्ष, कपास से बने एक फ्रॉक प्रकार परिधान ऊपर के शरीर को कवर करता है और निचला हिस्सा धोती या पजामा के साथ लिपटा जाता है। राजस्थानी महिलाएं आभूषण की शौकीन होती हैं और वे अपने कपड़े को चंकी चांदी और लाख के गेहने के साथ पहनती है |
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10. राजस्थान में पर्यटन
राजस्थान की कला और संस्कृति – राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है जिसको पूर्व में राजाओं की भूमि के रूप में पहचाना जाता था | भारत में आने वाला हर तीसरा पर्यटक राजस्थान आता है | इसलिए पर्यटन की दृस्टि से राजस्थान को बहुत ही धनी राज्य के रूप में जाना जाता है | अपनी रंगीन संस्कृति के कारण इस राज्य ने सिर्फ राष्ट्रीय पर्यटकों को ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को भी अपनी और आकर्षित किया है।
पर्यटन उधोग राजस्थान की कला और संस्कृति को लोगो तक पहुँचाने का कार्य करता है भारतीय इतिहास में सबसे पुराना होने के कारण इस राज्य में कई शाही राजा-महाराजाओं ने राज किया है यह महाराजाओं के भव्य महलों और राजसी किलों किलों का क्षेत्र रहा है जिनको आज पर्यटन के लिए खोल दिया गया है |
राजामहाराजा के शासन का परिणाम है जो यहाँ पर इतने किले , हवेलिया , महल , इत्यादि देखने को मिलते है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को आकृषित करते है |राजस्थान में वास्तुकला और कला की एक विशिष्ट शैली मौजूद है यह सैली भी यहाँ के पर्यटकों को काफी पसंद आती है |
राजस्थान के पर्यटन में जयपुर के महल, उदयपुर की झीलें और जोधपुर, बीकानेर तथा जैसलमेर के भव्य किले एवं बालू टिब्बों तक भारतीय एवं विदेशी पर्यटकों के लिए सबसे आकर्षित जगहों में से हैं। इन पर्यटक स्थलों को देखने हजारो की संख्या में पर्यटक पहुँचते है | जयपुर का हवामहल, जोधपुर, बीकानेर के धोरे और जैसलमेर के धोरे काफी ज्यादा प्रसिद्ध हैं। जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग ,सवाई माधोपुर का रणथम्भोर दुर्ग एवं चित्तौड़गढ़ दुर्ग भी यहाँ के पर्यटकों को अपनी और खींचते है | राज्य में कई पुरानी हवेलियाँ भी मौजूद है जो वर्तमान में हैरीटेज होटलो में बदल दिया गया हैं। राजस्थान के प्रमुख पर्यटन केन्द्रो में जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, माउंट आबू एवं जैसलमेर है | इसके अलावा अलवर में सरिस्का बाघ विहार, भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी विहार, एवं अजमेर, पाली, चित्तौड़गढ़, ब्यावर आदि |
कौलवी राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के पास एक गांव है जो बौद्ध विहार के लिए प्रसिद्ध है।
केशवरायपाटन एक प्राचीन नगर जो कोटा शहर से 22 किमी. दूर चम्बल नदी के तट पर स्थित है।
ऊँट सफारी
रेगिस्तानी इलाके में भ्रमण करना हैं तो कैमल (ऊँट) सफारी जो काफी प्रसिद्ध है | ध्यान रखें कि कैमल सफारी का मज़ा सर्दियों में ही लें।
जीप सफारी
अनछुए स्थानों तक पहुँचने का बेहतरीन तरीका जीप सफारी है।
आज के इस आर्टिकल्स में हमने राजस्थान की कला और संस्कृति के बारे में विस्तार से जाना है उम्मीद है आपको मेरे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी अगर आपके मन में कोई सवाल हो तो कमेंट करके जरूर बताये |